अजीब एक 'गंध' आती है,
एक दम अलग,
तुम औरतों से ...
हरे धनिये की ...
या
कच्ची तुरई के पीले फूल की
या
रोप रही मिटटी की ...
तुम्हारी चटक सूती धोती भी न ...
'सिलक' की साड़ी से बढ़िया लगती है |
ऐसे 'खी खी' हँसती ,
जब
कोई तुम्हारी तारीफ़ करें ,
कि बस
पुरवैया इठला जाये ...
सिर ऐसे ढाँकती
जईसे सब मर्द तुम्हारे श्वसुर, जेठ लगें ...
फोटु खिंचवाते टाइम भी
हंसते-हंसते पल्लु से मुंह ढक लेती हो ...
पता है ,
तुम तो
चुपके से उतरती कोई बूँद हो
किसी के पुराने इंतज़ार की ...
- निवेदिता दिनकर
तस्वीर : मेहनतकश किसान औरतों से एक रूबरू , लोकेशन : दारुक , वृन्दावन