बुधवार, 30 अगस्त 2017

अचेतन






"काली मछली पीछा ही नहीं छोड़ रही थी | 
तभी मुझे किसी ने वहाँ से हटा कर मेरे पुराने मित्रों के पास छोड़ दिया | 
मुझे वापिस आकर बहुत अच्छा लगा | 
मैं ख़ुशी के मारे रोने लगी | 
लेकिन यह क्या? मेरे आँखो में पानी तो था, मगर मेरे किसी दोस्त को पता ही नहीं चल पाया  कि मैं  रोई भी हूँ क्योंकि क्योंकि मेरे चारों ओर पानी ही पानी था |" 

नारंगी मछली सोचते सोचते सुबकने लगी | 
काश ...

- निवेदिता दिनकर 
  30/08/2017

तस्वीर : आँखों सुनी कानों देखी 

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

शायद ही




चारों तरफ लहू 
और सब 
एक दुसरे का लहू पी रहे 
'वैम्पायर'  ...  

सब सिर एक तरफ 
देह से अलग 

मान लिया है देह ने भी 
कि वह इस में खुश है | 
जरा सी भी आपत्ति नहीं| 

राक्षसी प्रवृत्ति 
की 
प्रथा आज 'डिमांड' में जो है|  

शर्म से सूरज भी उग नहीं पाता 
निढाल हो जाता है | 
और चाँद तारें  ... 
मुँह छिपाये रात का सहारा लिए 

कहते है ,
फिर समुद्र मंथन होगा 
और क्षीर सागर को मथ कर 
अमृत पान 
लेकिन,

 लेकिन
 विष निगलने

कोई नीलकंठ ... 
अबकी बार 
शायद ही आये  ...  
- निवेदिता दिनकर 
  25/08/2017

फोटो क्रेडिट्स : मेरी नज़र "मंथन के लिए तैयार समुद्र ", लोकेशन : मंदारमनी , पश्चिम बंगाल   

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

मृगमरिचिका

रंगों ने 
रंगों को 
रंगों से 
रंगों के 
रंगों द्वारा 
रंगों के लिए 
रंगों का 
रंगों के 
रंगों की 
रंगों में 
रंगों पर 

रंग दिया  ... 

हे रंग! 
अरे रंग !!

- निवेदिता दिनकर
  22/08/2017

फ़ोटो क्रेडिट्स : मेरी नज़र , लोकेशन : डी एल एफ मॉल , दिल्ली 

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

असाधारण लम्हें








यूँ तो यह मामूली सी ही बात है, लेकिन खासम खास मेरे लिए , मेरे अंदर की जान के लिए  ... 

पिछले दिनों लखनऊ जाना हुआ, राष्ट्रीय पुस्तक मेले में कविता पाठ हेतु  जो मेरे लिए तो हज़ार भाग्य की बात है, पर बोनस के तौर पर एक खुशखबरी और मिली कि बेटे की मीटिंग लखनऊ में १४ तारीख को होने से १३ को वह भी पहुँच रहा है | जानकर, बच्चों सी खुश हो गयी क्योंकि पिछले दो तीन महीने से नौकरी की वजह से वह घर भी नहीं आ पाया था | बस फिर क्या था , मैंने कहा , जिस होटल में तुम रुकोगे मैं भी वहीं रुकूँगी, इस बहाने एक दिन एक रात तुम्हारे साथ रह लूँगी | 

मैं दोपहर दो बजे लखनऊ पहुँची, चेंज किया और हम साढ़े तीन बजे तक वेन्यू पहुंच गए | कार में बेटे जी बोलते है , 'मम्मा , प्रैक्टिस कर लो, एक बार '| मुझे उसकी यह बात इतनी अच्छी लगी , फ़ौरन गाड़ी में ही शुरू हो गयी | उसने ख़त्म पर 'थम्ब्स अप' दिखाया, तो मैं बस ...  
 खैर, बेटा भी अपने नरसी मोंजी कॉलेज, हैदराबाद में मैगज़ीन कमिटी का एडिटर रह चुका है और एक ज़बरदस्त लाइब्रेरी का मालिक, जो उसके आगरा घर में सुशोभित है | बचपन की चम्पक, नंदन, टिंकल, अमर चित्र कथा से लेकर जैकी कॉलिंस, मारिओ प्यूज़ो , अल्फ्रेड हिट्चकॉक , Ayn Rand, एरिच सेगल, अमिश त्रिपाठी और भी कितनें सारे नाम | 

रात मुझे लखनऊ की स्पेशलिटी कबाब्स का जायका दिलवाने "रेनेसांस" भी ले गए और मैं बस आनंदित होकर बहती जा रही थी , लहरों से अठखेलियाँ कर ... 

 एक साधारण सी माँ के लिए इतने असाधारण लम्हें |     

और क्या चाहिए ...   

काँटों से खींच के ये आँचल
तोड़ के बंधन बांधे पायल
कोई न रोको दिल की उड़ान को
दिल वो चला..
आज फिर जीने की तमन्ना है
आज फिर मरने का इरादा है ,,,  


- निवेदिता दिनकर 
  18/08/2017

फ़ोटो : लखनऊ 

बुधवार, 9 अगस्त 2017

सुन विकास बराला,

सुन विकास बराला,

आज सब तेरे करतूत को थू थू कर रहे है| तु इतना तो अपडेट होगा ही | 
ब्रेकिंग न्यूज़ में जो तेरी फिल्म बन रही है, उस से तो तु वाकिफ़ है |  
और तेरी प्यारी माँ ... 

वह बेचारी अपने को कितना कोस रही है , शायद अपने को छुपाये छुपाये फिर रही हो | 
तुझे पैदा करने से पहले से लेकर अब तक की सारी बातें सोचती जा रही होगी | 
यह भी दिमाग़ में आ रहा होगा, कि, क्या ग़लती हो गयी उस से, कब तु इतना बीमार हो गया ? 
इतना ओछा हो गया, इतने  गर्त में गिर गया, कि लड़की देखी और विकृति आ गई| 
तेरी माँ, घर के और बहु बेटियों के बारे में भी सोचकर दुःखी हो रही होगी कि कहीं ऐसी हवस ने कहीं और भी ... इस ख्याल मात्र से उसकी रूह काँप गयी होगी | 

क्यों, आख़िर क्यों किया ?  उक्त घटना से एक शाम पहले, या सुबह, या एक घंटा पहले सब कुछ कितना ठीक था ... यह क्या कर डाला ?
सब कुछ, वह बेचारी माँ सोच रही है जिसका तुझे रत्ती भर भी इल्म नहीं, विकास | 

अब क्या करेगा ? क्या सोच रहा था, कि तु किसी ऐसे आदमी का बेटा है, और तु कुछ भी कर सकता है, कोई पाप कृत्य करेगा और बच जाएगा, 
तो 
सुन विकास     

अब अपने ही घर में घुट घुट कर मरणासन्न जीने के अलावा तेरे पास और कोई चारा नहीं क्योंकि 
बाहर हमारी पाठशाला तेरे इंतज़ार में है | 
अच्छा हाँ, हम दिन में, रात में, शाम में, दोपहर में, जब मर्ज़ी हो, जहाँ मर्ज़ी हो, आएंगे जायेंगे, और जो मर्ज़ी हो पहनेंगे |  

|| याद रखना, अगली बार तेरे घर में घुस कर मारेंगे ||    

- एक और वर्णिका    
  ०९ /० ८ /२०१७

नोट : यह एक खुली चिठ्ठी है और हर उस सिस्टम के लिए है जो बददिमाग, बेअदब , बेईमान है और उस पर नकेल कसने की सख्त जरूरत है | 
तस्वीर : मेरे द्वारा ,  ताजमहल के पास , आगरा