एक से बढ़कर एक
कवितायें
नायाब, बेमिसाल, असाधारण ...
प्रेम से भरी हुई
ज़िन्दगी से लबरेज़
शहद में डूबी
शहनाई को मात करती नवेली धुन जिसकी
चिड़ियों की मासूम कलरव करती
ग़ज़ल नुमा
निष्कलंक
संपन्न
किसको पढ़े
किसकी आरती उतारें
प्रशांत महासागर से भी गहरें
रुई मलमल से थोड़ी ज्यादा मुलायम
आह जैसी चाह ...
वातानुकूलित कमरों से निकली
कवितायें
शायद ऐसी ही होती है !!
- निवेदिता दिनकर
१७/०६/२०१७
तस्वीर : तपती धूप तकती पेट