सोमवार, 27 मार्च 2017
शुक्रवार, 24 मार्च 2017
उदाहरण के परे ..
बापी हमारे तब Izatnagar, इज़्ज़तनगर, बरेली में पोस्टेड थे।
हमारे पड़ोस में पाठक आंटी सपरिवार रहती थी जिसमें अंकल और उनके पाँच बच्चे थे। जब भी वह हमारे घर आती थी, हमारे घर का पानी चुल्लू में लेकर पीया करती थी क्योंकि हम बंगाली लोग मछली खाते है और वह थी विशुद्ध शाकाहारी। मगर उनके बच्चे allowed थे हमारे घर का कुछ भी शाकाहारी खाने के लिए ।
अच्छा मज़ेदार बात यह थी, कि आंटी का यह बर्ताव कभी खला भी नहीं।
शायद इसलिए क्योंकि वह बेहद मददगार थी। जब माँ का एक बार टेबल फैन के ब्लेड से उनकी तीन उँगलिया लगभग कट सी गयी थी और हम बहनें बहुत ही छोटी थी, तब उन्होंने ही माँ को नहलाने, खिलाने से लेकर हमारी देखभाल ऐसे की थी जैसे ... यानि किसी उदाहरण के परे ...
हमारे घर के सामने के दाएं तरफ एक मैसी परिवार रहता था । अंकल की जगह यहाँ भी आंटी ज्यादा मशहूर थी जो टीचर जी के नाम से ज्यादा जानी जाती थी। हम सबको २५ दिसम्बर का बड़ा इंतज़ार रहता था शायद क्रीम से भरा केक खाने को जो मिलता था । और २४ दिसम्बर से ही यीशु के कैरोल्स शुरू हो जाते थे।
बराबर से ही फैज़ परिवार था जहाँ हैंडसम सलीम अंकल और उनकी खूबसूरत पत्नी रज़िया रहती थी। आंटी के हाथ की सेवइयाँ ... आहह !! स्वाद तो अभी तक जुबान पर चढ़ा हुआ है । कबाब तो आज तक उनके घर से बेहतर कभी चखा ही नहीं।
अरे, कहाँ है आप लोग ?
- निवेदिता दिनकर
सोमवार, 20 मार्च 2017
बेटी बनाम बहू
- कुछ दिनों पहले वृद्धाश्रम जाना हुआ । मेरी मुलाक़ात वहाँ एक अम्मा से हुई । काफी चुपचाप खड़ी थी।
मुझे बताया गया कुछ दिनों पहले एक रात लगभग २ बजे उनका बेटा उन्हें वृद्धाश्रम के गेट पर छोड़कर चला गया । अम्मा को झूठ बोलकर लखनऊ से लाया गया था।
- बेटे द्वारा पिटे जाने से क्षुब्ध माँ वृन्दावन चली गयी। पहले पिता अपने बेटे की तरफदारी करता था , अब शायद वह भी पत्नी के साथ वृन्दावन में है।
क्या ऐसी करतूत केवल बेटे ने ही की होगी ?
बेटियों, जब तुम बहू बनती हो, तब सास माँ नहीं होती, क्या ?
- निवेदिता दिनकर
20/03/2017
फ़ोटो : उर्वशी दिनकर , लोकेशन - मसूरी
शनिवार, 18 मार्च 2017
असाधारण बसंत
कभी चित्रकार की तूलिका में,
कभी लुहार के हथौड़े में,
कभी रेहड़ी वाले के ठेल में,
कभी जीवन के रेलमपेल में
बसंत अगड़ाई लेता रहा ...
निशंक आह्वान देता रहा ...
कभी उस शिशु के आँखों में
कभी उस माँ के चेहरे पर ...
जो बड़े चाव के साथ
सड़क किनारे करा रही स्तन पान ...
तो कभी उस पिता के साँसों में
जो दुर्गन्ध नाली की सफाई रहा कर
ले परिवार का पोषण अपने सर ...
चाहे हो पूस की सर्द रात
या हो जेठ की दुपहरिया
बसंत गुनगुनाये निकलता रहा
व्याकुल आह्वान देता रहा ...
लेकिन,
इस छोटे बारह साल के आँखों में नहीं है कोई बसंत,
न कोई बेफिक्री, न ही कोई उतावलापन
कर गया सवाल, बारम्बार, उसका भोलापन
रे मन,
अब तु ही बता, क्या आदि क्या अंत
क्यों दे रहा अधूरा हेमंत, अपूर्ण बसंत
बसंत अनवरत बहता रहा
निःशब्द आह्वान देता रहा
बसंत अनवरत बहता रहा
निःशब्द आह्वान देता रहा
- निवेदिता दिनकर
फ़ोटो : इस प्यारी सी बातून लड़की का नाम है, सपना, जिस से मेरी मुलाक़ात एक बाजार में हुई जो फुल कॉन्फिडेंस के साथ अपना सामान बेच रही थी। यहीं इस मासूम का बसंत है|
शुक्रवार, 17 मार्च 2017
सीढ़ियाँ
एक खिंचाव सा महसूस किया, इस तस्वीर को देख कर ।
जाने क्यों लगा जैसे बरसों इन सीढ़ियों पर बैठी रही हूँ । यहाँ से गुजरते हवाओं से बातें करी हो , चाँदी सी झिलमिलाती इस झील से कोई पुरानी मुलाक़ात हो, अपनी ख्वाइशें इन सबसे साँझा की हुई हो।
बीती हुई बातें, रीती हुई रातें सताती बहुत है। कई अनकही कहानियाँ जो थामे होती है।
गीली मिट्टियाँ और उस पर कदमों के निशां आज भी दिखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे
कोई मुझे पुकार रहा है, और, और मैं नंगे पाँव दौड़ी चली जा रही हूँ ...
- निवेदिता दिनकर
फ़ोटो क्रेडिट्स : उर्वशी दिनकर