रविवार, 20 मार्च 2016
मंगलवार, 15 मार्च 2016
बेबुनियाद बातें
हमेशा काम की बातें
 या
 मतलब की बातें 
या 
फिर जरूरी बातें 
या
ऊँचे दर्जे की बातें ...  
कभी बेमतलब की या बेबुनियाद या गैर जरूरी बातें क्यों नहीं?
मसलन 
घर में कौन कौन है?
बेटी कितनी बड़ी हो गयी है?
स्कूल जाने लगी की नहीं? 
बेटे को बिगाड़ना मत ... 
उसकी चोट ठीक हो गयी की नहीं ... 
रुकसाना कैसी है?
अब और बच्चें मत पैदा करना !!
अम्मी ने क्या खाना बनाया?
अब्बू की खाँसी कैसी है?
तम्बाकू खाना कब छोड़ रहे हो?
वगैरह वगैरह ... 
आज कल यही बे सिर पैर की बातें कर रही हूँ 
और 
और 
फिर जगह जगह इन आधी अधूरी बातों की पैबंद लगा खूब जी रही हूँ  ...
बड़ा ही सुकून है, सचमुच  ...
- निवेदिता दिनकर     
  १५/०३/२०१६ 
सन्दर्भ : राह चलते मजदूरों से बतियाते हुए  
तस्वीर: देहरादून में कुछ बच्चें भिक्षुकों के साथ 



