सोमवार, 9 नवंबर 2015

या फिर



क्यों लगता है 
एक दर्द है हमारे प्रेम में 
या 
एक प्रेम है हमारे दर्द में 

जो 
हौले हौले
कम्पन 
बन पनप रहा है  … 

जैसे 
रात की रानी की ठंडी ठंडी खुशबू रात से घुलमिल रही हो 
या 
भोर की ओस नंगे पैरों से लिपट रही हो  
या फिर 
वन की लताओं का आलिंगन लेता विक्षिप्त पुरुरवा  … 

- निवेदिता दिनकर 
  ०९/११/२०१५   

फ़ोटो क्रेडिट्स : उर्वशी दिनकर, लोकेशन : नौकुचियाताल की एक सुबह   

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

आत्मिक प्रेम





और  कल जब तुमने कहा, 

तुम बात करती हो,
जब  
तुम लड़ती हो,
जब 
तुम फ़ोन मिलाकर 
कहती हो,
आना मत  …   
पता नहीं,
मुझे सुकून सा लगता है  … 

चल बुद्धू ,
यह क्या कोई बात हुई  … 
तुम ठिठोली कर रहे हो न ?

नहीं
नहीं …  
बस 
डरता हूँ तुम्हारी ख़ामोशी से … 

तब से 

दीवानी सी उड़ रही हूँ !!

- निवेदिता दिनकर 

फोटो क्रेडिट्स : दिनकर सक्सेना, लोकेशन मंसूरी की मादकता भरी सांध्य