शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

धूप







रेंगते हुए उतरता धीरे-धीरे वह कतरा धूप का,
दरख्त के ऊपरी छोर से बिन आहट के,
हल्के नीले आसमां का रंग भी बदला बदला,
बादलों के टुकड़ों ने भी रंजिशें कर लीं है
और
मैं खयालातों के नरगिसी बगीचें में
'अपने'
साथ खिल खिल हँस रही हूँ।
शिराओं से दर्द भी उतरता जा रहा है
मंद मंद ...
बिल्कुल गर्भ से शिशु के बाहर आने सा...


- निवेदिता दिनकर

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