मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

सुकून



उन दिनों मैं देहरादून में बेटे के पास थी जब मुझे एक फोटो के माध्यम से बताया गया कि एक दो महीने का मेहमान घर पर आया हुआ है । मुझे यह ख़बर बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी।
मैं कोई भी प्रकार, स्पीशीज का " इंसान द्वारा प्रदत्त नाम 'कुत्ता' " नहीं रखना चाहती थी क्योंकि ...
खैर ...
असल में मेरे अंदर इमोशन्स को काबू में रखने की अक्ल का अकाल है।
अश्क़, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते और सरे आम बहने लगते है। पिछले कुछ सालों में तीन प्राणियों को खो चुकी हूँ और अब साहस नहीं है॥
लेकिन अब यह साहिबा आ चुकी है, और दो बरस की है। जैसे इनको ठंडी जमीं सुकून देती है वैसे ही इनका 'पास' होना मुझे सुकून देता है।

मेरे कानो में यह गीत बज रहा है,
मरके भी न मिटे जो, यह वो दीवानगी है ...
दिल को लगाकर देखो, प्यार में क्या ख़ुशी है ...

... और चाहिए भी क्या, बस !!


- निवेदिता दिनकर
०४/०४/२०१७

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