सोमवार, 28 सितंबर 2015

कैसे भूल सकती हूँ …


सुन बिटिया झुमकी ,
कुछ महीनों पहले तुझे सोचते हुए लिख डाला था । आज मैं पोस्ट कर रही हूँ ।
तू अपने स्कूल की धर्मशाला ट्रिप में खूब खूब मज़े करना। फोटोग्राफी, हाईकिंग, कैंपिंग , गपशप, कूदना, फाँदना सब कुछ पर अपना ख्याल रखना । पापा और मैं इंतज़ार कर रहे है ।

कैसे भूल सकती हूँ,
उन दो पैरेलल लाल लकीरों को …
जब पहली बार देखा ' तुझे '
मैं मंद मंद बहती पवन बन गई
लहराने लगी
झूमने लगी
गाने लगी
सुन री पवन, पवन पुरवैया …


फिर बिंदु
से होकर
आकार …

एक जीवंतता
एक यथार्थ
एक धड़कन
एक तैयारी
एक मिसाल
का आकार

अब साकार होने लगा ...

मैं
प्यासी पपीहरा सी व्याकुल
अपने आगोश में लेने को आकुल


और फिर
एक दुपहरिया,
एक कुहकती चिरैया
न लगे किसीकी नजरिया
बदलने आयी जो नजरिया
बढ़ाने, जीवन का पहिया …
सुन री पवन, पवन पुरवैया …

कैसे भूल सकती हूँ …

- निवेदिता दिनकर
27/09/2015

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

वाह रे, असभ्य मानव!!


कल  के टाइम्स ऑफ़ इंडिया के फ्रंट पेज की एक खबर,  
मेरठ के पास डिस्ट्रिक्ट बागपत। वहाँ की खाप पंचायत ने बतौर सज़ा दो बहनों को बलात्कार और निर्वस्त्र  कर परेड कराने का आदेश दिया है क्योंकि उनका भाई एक विवाहिता के साथ भाग गया है।     

आज की बेशर्म खबर, 
दुनिया मगर बेखबर, 
कर कलेजे  के टुकड़े, 
रोती शर्म  दिन भर ...

कैसा है यह देश,  
कहरों के कितने वेश, 
यह कैसी सज़ा है, 
खाप पंचायती आदेश ...

फिर से बलात्कार, 
फिर से शर्मसार, 
नहीं आया कोई मुरली,  
 बचाने ददर्नाक चीत्कार ...

काट ही डालो औरत नस्ल, 
नष्ट कर डालों यह फसल, 
न, एक भी न बच पाये कहीं!
वर्ना यह कल देंगी तुम्हें मसल...
धूर्तता की मिसाल हम, 
लाश को ढो रहे है हम, 
बस कर रहे है ढोंग, 
जीने का सबब हम ...

बस कर रहे है महा ढोंग, 
जीने का अजीब सा सबब हम ...

- निवेदिता दिनकर 
  01/09/2015

तस्वीर साभार गूगल : गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की एक बेमिसाल पेंटिंग