बुधवार, 24 सितंबर 2014

कविता


फिसलती रेत सी,
घुमड़ती बादल सी …
कभी मायावी,
कभी भूखी …
कभी खामोश इंतज़ार,
कभी चुप्पी उजागार …
कभी तिल तिल दाह,
कभी चल चल राह…
दर्द की ओढ़नी ओढ़े
छिपती छिपाती …
तो कभी गर्म लावा
सी धौकती …

अब कितना हिसाब रखूँ
तुम्हारा !!

- निवेदिता दिनकर
  २४/०९/२०१४


नोट - उपरोक्त तस्वीर 'उर्वशी दिनकर' के कैमरें से। "मकड़ी के जाल में कैद सूखे पत्ते "   

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

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एक बार फिर …  
हरी घास मुरझाई पड़ी है,
पंखुरियाँ धीरे धीरे झड़ने लगी है, 
देखो, मौसम भी अब मौसमी नहीं रहा
ठण्ड भी ज्यादा कहाँ पड़ती है ?   
सबकी सब गौरेया न जाने कहाँ चली गयी  … 
इलाहाबादी अमरुद का पेड़, 
ओह, सूख गई टहनियाँ  
और 
कच्चा अमरुद, मीठा भी नहीं रहा …  
यह 
रुआंसा आम का पेड़.…  दो एक साल रूक रूक कर फल देता,   
अरे हाँ, वह देखो जंगली गुलाबी गुलाब का झाड़,
रात की रानी,
गेंदे के फूल और पत्तिया, 
किसी को चोट लगती 
बस पत्तियों को रगड़कर लगा देते … 
खट्टी मीठी इमली,
लाल इमली भी, 
इक्कड़ दुक्कड़, टिप्पी टिप्पी टॉप 
तपती धूप की मीठी तपन  …   
बिजली के जाने पर खुश क्यों होते ? 
डायना, फैंटम, मैंड्रेक्स का इंद्रजाल  
साथ नमक अजवायन के परांठे का थाल  … 
सुर्ख नारंगी आसमान
सा खुल कर,
दूर तक 
जी जाना  … 

आज कहाँ कहाँ से गुजरी ... 
एक बार फिर …  

- निवेदिता दिनकर  

तस्वीर मेरे द्वारा खींची गई , मदुरई के एक फार्म में जहाँ नारंगी शाम मिली  ...

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

तमिलनाडु



दक्षिणी भाग, दक्षिण भारत। अपूर्व, अस्वाभाविक सुन्दर। बहुत सुखद एवं तलों तक समां जाने वाली। यों तो कई बार आई हूँ परन्तु इस बार कुछ नया नया लगा, 'क्या', ये तो पता नहीं  … लोग, ज़मीन, रहन सहन, दुकानें, हलचल, खानपान या आबोहवा। 
कई बार भाषा आड़े आई, मगर थोड़ी देर के लिए। शहर का निर्माण हो या खेतों में फसल, चेन्नई का आकर्षण या महाबलीपुरम का समुद्री तट या मदुरई का मीनाक्षी अम्मां मंदिर, खुशहाली और विस्तार देखा जा सकता है। 
बारिश का लुत्फ, दक्षिणी शैली में केले के पत्ते पर भोजन, सुगंधित फूलों के गजरें, स्थानीय लोगों से बातचीत का आनंद बखूब लिया गया।
भीतर तक ऊर्जा का उभार और महकती यादों के आगोश में क़ैद से आज़ाद नहीं होना चाहते … और जिंदगी भर सम्हाल के रखना चाहेंगे …  क्यों मित्रों!!

- निवेदिता दिनकर