गुरुवार, 9 जनवरी 2014

फिलहाल

यूँ  तो हर ओर 
अधूरापन, 
रिश्तों में सिलवटों 
का आवरण  …
टुकड़ो में पलता 
जीवन प्रभंजन  … 
दौड़ता दौड़ाता 
निर्झर 
क्लांत 
अंतर्मन …
बस ,
अब सृजन 
हो जाने दे, 
कोमल पत्तो को  
भीग जाने दे, 
फिलहाल
जी  लेने  दे । 

'फिलहाल'
जी  लेने  दे ॥ 

- निवेदिता दिनकर 

13 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. .यूँ ही स्नेह बनाए रखिएगा, ओंकार जी ॥

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  2. उत्तर
    1. कुछ अपने कीमती वक़्त दिए, कालीपद जी
      ....शुक्रिया ।

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  3. उत्तर
    1. आपके कमेंट के लिए धन्यवाद, रश्मि जी |

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  4. शुक्रिया मेरी रचना "फिलहाल "चुनने के लिए ... राजीव जी

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